Thursday, 22 October 2015

रोटी !

It’s the food which makes people toil in fields, offices, factories and behind glass-cabins. It’s the food over which wars are fought. It’s the food over which revolutions erupt and Czars get killed. It’s the food which connects us to God....



रोटी की चाहत में ही पहाड़ चढ़े जाते हैं,
रोटी की चाहत में ही युद्ध लड़े जाते हैं ।


रोटी के झगड़े में ही ताज लुढ़क जाते हैं,
रोटी की ताकत से ही तख्त पलट जाते हैं ।



रोटी की माया से ही महल खड़े होते हैं ,
रोटी की छाया में ही स्वप्न बड़े होते हैं ।


रोटी की गरमी से कुछ हृदय पिघल जाते हैं,
रोटी के मिलने से कुछ भाग्य बदल जाते हैं ।


रोटी की राहों पर कुछ दोस्त बिछ्ड़ जाते हैं,
रोटी की चाहों पर कुछ स्वप्न बिखर जाते हैं ।


रोटी की माया पर कुछ ग्रंथ पढ़े जाते हैं,
रोटी की महिमा पर कुछ काव्य गढ़े जाते हैं ।


रोटी के आटे से माँ के हाथ सने रहते हैं,
रोटी की छाया में ही परिवार बने रहते हैं ।



Image courtesy-National Geographic.  .  .  .  .  .  .  .  .  . .  .  .
Roti is universe. How? Read here


8 comments:

  1. रोटी का बहुत ही यतार्थ वर्णन किया है आपने।

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  2. Fantastic post, Saket! Enjoyed it.

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    1. Thanks Hema, for expressing your like for the post.

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  3. Loved the poem. Hunger drives our reason.

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    1. Thanks Kiran, for letting me know that you liked it.

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  4. A poem on roti...Never thought I would see that.Very nice:-)
    https://doc2poet.wordpress.com/

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    1. Thank you Amit, for visiting and expressing your like.

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