Saturday, 28 February 2015

रोटी!


रोटी की चाहत में ही पहाड़ चढ़े जाते हैं,
रोटी की चाहत में ही युद्ध लड़े जाते हैं ।


रोटी के झगड़े में ही ताज लुढ़क जाते हैं,
रोटी की ताकत से ही तख्त पलट जाते हैं ।



रोटी की माया से ही महल खड़े होते हैं ,
रोटी की छाया में ही स्वप्न बड़े होते हैं ।


रोटी की गरमी से कुछ हृदय पिघल जाते हैं,
रोटी के मिलने से कुछ भाग्य बदल जाते हैं ।


रोटी की राहों पर कुछ दोस्त बिछ्ड़ जाते हैं,
रोटी की चाहों पर कुछ स्वप्न बिखर जाते हैं ।


रोटी की माया पर कुछ ग्रंथ पढ़े जाते हैं,
रोटी की महिमा पर कुछ काव्य गढ़े जाते हैं ।


रोटी के आटे से माँ के हाथ सने रहते हैं,
रोटी की छाया में ही परिवार बने रहते हैं ।



Image courtesy-National Geographic.  .  .  .  .  .  .  .  .  . .  .  .
Roti is universe. How? Read here

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